सिफ़री ने पश्चिम बंगाल के पंचपोटा और मेडिया आर्द्रभूमि में जलवायु उन्मुख मत्स्य पालन का प्रदर्शन किया
30 अप्रैल, 2022
पिछले कुछ दशकों में वैश्विक तौर पर जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव आलोचना के विषय रहे हैं क्योंकि इससे लोगों के खाद्य उत्पादन, आय, आजीविका और पोषण सुरक्षा बहुत अधिक प्रभावित हुये हैं। आईपीसीसी 2021 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1970 के बाद से वैश्विक तौर पर सतही तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है। 21वीं सदी (2001-2020) के अंतिम दो दशकों में, वैश्विक सतही तापमान में +0.99 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गयी, जो जलवायु परिवर्तन को इंगित करती है। जलवायु परिवर्तन से जल के तापमान, जल स्तर और अन्तर्स्थलीय जल के प्रवाह मार्ग में परिवर्तन आ सकता है जिससे जलीय पारिस्थितिकी और मत्स्य पालन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। भारत में अन्तर्स्थलीय खुलाजल संसाधन मछली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण संसाधन हैं जो अत्यधिक मछली पकड़ने, प्रदूषण, जैव विविधता की हानि, विदेशी प्रजातियों द्वारा परभक्षण, तलछात में गाद का जमाव और मत्स्य आवास कम होते जा रहे हैं। मानवजनित कारक आदि के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इन पारिस्थितिक तंत्रों को और भी अधिक कमजोर बना रहा है, जिससे लाखों मछुआरों की आय और आजीविका घट रही है। अन्तर्स्थलीय खुले जल पर प्रमुख प्रभाव जैसे जल प्रवाह में परिवर्तन, परिवर्तित जल विज्ञान, ऊष्मीय तनाव, प्राकृतिक आपदाएँ, मत्स्य आवास का क्षरण, प्रजनन काल और प्रजनन व्यवहार में परिवर्तन आदि लक्षण शामिल हैं, जिससे जलीय जैव विविधता और मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।।

जलवायु परिवर्तन के कारण अन्तर्स्थलीय खुले मात्स्यिकी विशेष रूप से बाढ़कृत मैदानी आर्द्रभूमि पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है, जैसे - मछलियों की संख्या में गिरावट, प्रजनन चक्र में बदलाव, पारिस्थितिकी तंत्र और इस पर आश्रित मछुआरों की आय आदि में कमी। अतः जलवायु अनुकूल रणनीतियों को विकसित और प्रदर्शित करने तथा बदलते जलवायु के संदर्भ में मछुआरों की क्षमता में वृद्धि के लिए उन्हें जागरूक बनाना अनिवार्य है। पेन में मछली पालन एक घिरे हुए स्थान में किया जाता है और इसके लिए संस्थान ने पश्चिम बंगाल, असम और केरल की आर्द्रभूमि में स्वदेशी मत्स्य प्रजातियों के संरक्षण के लिए मछली और कवच मछली पालन आदि पेन पालन शुरू किया है। बदलते जलवायु के अनुकूल होने के लिए पेन और पिंजरा में जलवायु प्रभावित स्वदेशी मछली प्रजातियों का संचयन किया जाता है।

इस दिशा में सिफ़री ने 29 से 30 अप्रैल, 2022 को किसान भागीदारी और आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में "जलवायु प्रभावित अन्तर्स्थलीय मत्स्य पालन" और जलवायु प्रभावित निकायों में संचयन कार्यक्रम का आयोजन किया। निक्रा (एनआईसीआरए) परियोजना के तहत पंचपोटा और मेडिया आर्द्रभूमि, उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल में यह आयोजित किया गया। इस अभियान में क्लाइमेट रेजिलिएंट पेन कल्चर सिस्टम (सीआरपीएस) की स्थापना, मछलियों के विकास के लिए उच्च प्रोटीन फ़ीड का वितरण, सीआरपीएस और पिंजरों में जलवायु प्रभावित स्वदेशी मछलियों का भंडारण और हितधारकों के साथ बैठक कर उन्हें जलवायु प्रभावित रणनीतियों और अनुकूलन प्रौद्योगिकियों के बारे में जागरूक करना शामिल था। ।

सिफ़री के निदेशक डॉ. बि. के. दास के मार्गदर्शन में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में डॉ. उत्तम कुमार सरकार, प्रभागाध्यक्ष तथा परियोजना के प्रधान अन्वेषक ने आर्द्रभूमि मत्स्य पालन और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर प्रकाश डाला। पंचपोटा आर्द्रभूमि में तीन सीआईएफआरआई एचडीपीई पेन (0.1 हेक्टेयर प्रत्येक) और मेडिया आर्द्रभूमि में छह सीआईएफआरआई जीआई केज स्थापित किए गए। पंचपोटा में जलवायु उन्मुख पेन और मेडिया में जलवायु उन्मुख पिंजरों (सीआरसीएस) में लगभग 90 किलोग्राम लेबियो बाटा, पुंटियस सराना और ओमपोक बिमाकुलैटस के बीजों को संचयित किया गया और 3 टन सीआईएफआरआई केजग्रो फीड वितरित किया गया। इस कार्यक्रम में कुल 70 मछुआरों ने भाग लिया।




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