भाकृअनुप- केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर ने एसटीसी और एससीएसपी कार्यक्रम के तहत झारखंड के मछुआरों को आजीविका सहायता प्रदान की

भाकृअनुप- केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के मछुआरों को मात्स्यिकी पालन से जुड़े ज्ञान प्रदान करने के माध्यम से उनकी आजीविका में सुधार के लिए अपना समर्थन प्रदान किया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कार्यक्रम के तहत झारखंड के विभिन्न जलाशयों में 32 नंबर सिफ़री एचडीपीई पेन, सिफ़री केज ग्रो फीड, मछली बीज वितरित किया गया। झारखंड के 5 जिलों (रांची, हजारीबाग, लोहरदग्गा, सिमडेगा, खूंटी) के 13 ब्लॉकों में स्थित 17 जलाशयों के एससी और एसटी मछुआरों को इससे लाभ होगा । जलाशयों में से 8 नामत: करंजी, लोटवा, नंदिनी, बैमारी, कंजोर, रामरेखा, केलाघाग और लारबाहेव, चांडलसो को एसटीसी के तहत कवर किया गया है और 9 जलाशयों नामत: पेरखा, बोंडा, केरेदारी, घाघरा, जराहिया, कांके, हटिया और गेतालसूद को एससीएसपी के तहत कवर किया गया है। इन पेन का रखरखाव और प्रबंधन संबंधित जलाशयों से जुड़ी मछुआरों की सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है। यह व्यापक कार्यक्रम सत्रह जलाशयों से 350 टन अधिक उत्पादन का उपयोग करने के लिए तैयार किया गया है। यह न केवल मछुआरों को अधिक आय प्राप्त करने में मदद करेगा, बल्कि यह झारखंड के खाद्य संपदा को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।
संस्थान ने एससी और एसटी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए घरेलू सजावटी मछली पालन भी शुरू किया है। इन कमजोर समुदायों की महिलाओं को सजावटी मत्स्य पालन से वैकल्पिक आय प्राप्त करने में सक्षमता हासिल होगी। इसके अलावा, संस्थान ने 'पोषक-मछली' की अवधारणा को लोकप्रिय बनाने के लिए झारखंड के जलाशयों में पुंटियस सरना मॉडल पेश करने की योजना बनाई है। 17 नवंबर, 2021 को संस्थान के निदेशक डॉ. बि .के. दास, ने रांची में इनपुट वितरण कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई और उन्होंने झारखंड के मछली किसानों को आश्वासन दिया कि आने वाले दिनों में संस्थान उनकी आजीविका में सुधार के लिए उनकी मदद करेगा। डॉ. एच. एन. द्विवेदी, निदेशक मत्स्य पालन, झारखंड सरकार ने भी इस प्रयास में संस्थान के साथ हाथ मिलाया। निदेशक डॉ. बि.के.दास ने वैज्ञानिकों और तकनीकी अधिकारियों की एक टीम के साथ पेनकल्चर कार्यक्रम का प्रदर्शन करने के लिए गेतालसूद जलाशय में पेनकल्चर साइट का दौरा किया और पेन में स्टॉकिंग भी की। यह माना गया है कि इस सहायता कार्यक्रम से झारखंड के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मछुआरों को स्थायी रूप से मदद मिलेगी। पूरे कार्यक्रम का समन्वय संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया, जिसमें डॉ. ए.के. दास, डॉ. अपर्णा रॉय, डॉ. पी.के. परिदा और डॉ. राजू बैठा थे।
  

  

  




20/11/21 को अद्यतन किया गया


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