संस्थान ने 17 मार्च 2020 को संस्थान मुख्यालय, बैरकपुर कोलकाता में अपना 74 वां स्थापना दिवस मनाया।
अपने स्वागत भाषण में, संस्थान के निदेशक डॉ. बि. के. दास, ने सभी सिफ़री परिवारगण को , प्रगतिशील मछली किसानों, मत्स्य उद्योग से संबंधित सभी को बधाई दी, जो संस्थान की सफलता के दीर्घ 73 वर्षों की यात्रा का हिस्सा थे। संस्थान ने अपने अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के माध्यम से मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्रांति और भारत में मत्स्य पालन के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है।संस्थान ने 1950-51 के बाद से देश में मछली के उत्पादन में 10 गुना वृद्धि करवाई हैं और देश को ऐसी तरक्की करने में सक्षम बनाया है। यह संस्थान इस तरह से एक दृष्टांत बन गया हैं देश के लिए। राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा पर संस्थान का गहरा प्रभाव हैं। डॉ. दास ने कहा कि इसकी स्थापना के बाद से संस्थान ने प्रेरित प्रजनन और मछली बीज उत्पादन जैसी उपयोगी अंतर्स्थलीय मत्स्य प्रौद्योगिकियां उत्पन्न की हैं। इसके साथ ही समग्र मछली पालन; नदियों में मछली बीज पूर्वेक्षण और स्पॉन संग्रह; जलाशय और बाढ़भूमि, आर्द्रभूमि मत्स्य प्रबंधन और पिंजरे और पेन में मछली बीज उत्पादन में भी संस्थान का योगदान रहा हैं।
डॉ. यू. के.सरकार, प्रमुख, जलाशय और आर्द्रक्षेत्र मात्स्यिकी प्रभाग ने अपने संबोधन में कहा कि संस्थान ने डॉ. अलीखुनी और डॉ. हीरालाल चौधरी के नेतृत्व में पिट्यूटरी ग्रंथि हार्मोन के इंजेक्शन से प्रेरित प्रमुख कार्प के सफल प्रजनन को संभव बनाया। यह भारतीय अंतर्स्थलीय मत्स्य अनुसंधान के उद्घोष में युगांतरकारी सफलता थी। संस्थान ने अंतर्स्थलीय मत्स्य प्रबंधन के स्थायी प्रबंधन के लिए प्रासंगिक दिशानिर्देश भी विकसित किए हैं।
डॉ. जीवन मित्रा,भाकृअनुप-केन्द्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान, नीलगंज, के पूर्व निदेशक ने अपने संबोधन में संस्थान को 74 वें स्थापना दिवस की बधाई दी।उन्होंने कहा कि संस्थान खुले जल निकायों में कल्चर आधारित मत्स्य पालन के माध्यम से समाज के भलाई के काम में लगा हुआ है।
डॉ. अशोक कुमार सक्सेना, भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और प्रधान अतिथि ने अपने संबोधन में संस्थान के अधिकारियों और कर्मचारियों को 74 वें स्थापना दिवस की बधाई दी। उन्होंने नीली क्रांति के लिए किसानों में जागरूकता पैदा करने और मछली उत्पादन बढ़ाने के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करने के लिए वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया।
डॉ. (श्रीमती) विजयलक्ष्मी सक्सेना, भारतीय विज्ञान कांग्रेस की महासचिव (निर्वाचित) और समारोह में मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में निदेशक और संस्थान के सभी कर्मचारियों को इस अवसर पर बधाई दी। उन्होंने 3-7 जनवरी, 2021 के दौरान पुणे में आयोजित होने वाली 108 वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में सभी को आमंत्रित किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि संस्थान के अंगुलिमिनों को गंगा नदी में छोड़े जाने से गंगा नदी में मछली की विविधता में सुधार का मार्ग प्रशस्त होगा।
इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों द्वारा दो प्रकाशनों का उद्घाटन किया गया जिनमें - "गंगा नदी की यूरिहालाइन मछलियों" नामक एक किताब और हिंदी पत्रिका "नीलांजलि-" का दसवां अंक शामिल था।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. ए. के. दास ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। प्रगतिशील मछली किसानों ने आपने अनुभव और अपनी उपलब्धि के बारे में सभा में उपस्थित सभी को संबोधित किया। स्थापना दिवस समारोह में कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने वाले 100 मछली किसानों ने भी भाग लिया। स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर सम्मानित अतिथियों और गणमान्य व्यक्तियों द्वारा केक काटा गया। इस भव्य समारोह का समापन बैरकपुर घाट पर माननीय अतिथियों द्वारा गंगा नदी में भारतीय प्रमुख कार्प बीज की 50000 अग्रिम अंगुलियों को छोड़के किया गया।